सूत्र :गुरुत्वप्रयत्नसंयोगानामुत्क्षेपणम् 1/1/29
सूत्र संख्या :29
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : गुरूत्व (बोझ) प्रयत्न और संयोग कार्य उत्क्षेपणारूप कर्म है। अर्थात् जब तक कोई वस्तु ऊपर को नहीं उठे तब तक भाभी नहीं प्रतीत होती, क्योंकि जो वस्तु पृथिवी पर है गुरूत्व पृथ्वी की आकर्षण शक्ति से उत्पन्न होता है और पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के विरूद्ध जो परिश्रम होता है वह भी उस गुरूत्व से होता है और उससे थकना जो प्रयत्न है उन तीनों से उत्क्षेप होता है, परन्तु उत्क्षेपण का उत्पत्त्कित्र्ता जीव ही है।