सूत्र :असमवायात्सामान्यकार्यं कर्म न विद्यते 1/1/26
सूत्र संख्या :26
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस प्रकार और कार्य सामान्य होते हैं ऐसे ही कर्म सामान्य कार्य नहीं होता। क्योंकि और सब कार्य समवाय अर्थात् बहुत से द्रव्यों से उत्पन्न होते हैं, परन्तु कर्म एक द्रव्य से होता है। आशय यह है कि जो संयोग से कर्म की उत्पत्ति मानते हैं वे भूल करते हैं कर्म एक चेतन से जड़ परमाणु और संयुक्त पदार्थों में रहा है। जिस प्रकार हमारी विद्यमानता से हमारे शरारों में कर्म होते हैं, हमारे (जीवों के) पृथक ही शरीर में कर्म होना बन्द हो जाता है। इसी प्रकार जगत् में जो संयुक्त पदार्थ या जड़ और असंयुक्त परमाणु आदि कर्म करते हैं जिसके संयोग और वियोग से जगत् की उत्पत्ति और नाश पाया जाता है, उन सबको चलाने वाला अर्थात् कर्म कराने वाला सबसे सूक्ष्म और सर्व व्यापक एक परमात्मा है।