सूत्र :संयोगविभागाश्च कर्मणाम् 1/1/30
सूत्र संख्या :30
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : संयोग और विभाग ये सब कर्म के कार्य हैं। बिना कर्म के संयोग और विभाग ही नहीं। अतः जहां पर संयोग पाया जावे वहां पर समझ लेना चाहिए कि यह सब कर्म से हुआ है। और कर्म कत्र्ता से होता है इसलिए प्रत्येक संयुक्त का असंयुक्त होना असंयुक्तों का संयुक्त होना, कर्म के कारण से है। यह आवश्यक नहीं कि कर्म का अनुमान कर सकते हैं तीब्र चलना, लचकाना आदि सब कर्म के कार्य हैं।