सूत्र :द्रव्यत्वं गुणत्वं कर्मत्वं च सामान्यानि विशेषाश्च 1/2/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : द्रव्य में द्रव्यत्व गुण है जिसके कारण वह और पदार्थों से भिन्न जाना जाता है इस ही प्रकार गुण में गुणत्व है जो औरों से उसे पृथक् करता है। ऐसे ही कर्म में कर्मत्व है जो उसकी अन्यों से पृथक करता है। वह सामान्य और विशेष दोनों प्रकार का है। जिस प्रकार पृथ्वी आदि प्रत्येक द्रव्य में जो गुण है, वह सामान्य द्रव्यों में रहने से सामान्य है, परन्तु जो पृथ्वी में विशेषता उत्पन्न करने वाला गुण है, जो पृथ्वी को दूसरे द्रव्यों से पृथक करते हैं, और वे विशष कर पृथ्वी में होने से और द्रव्यों में न होने से विशेष हैं, एक द्रव्य के बहुत कार्य द्रव्यों में जाने से, जो गुण, एक आर्य द्रव्य को दूसरे कार्य द्रव्य से भिन्न करते हैं, उनके कारण और भी विशेष हो जाते हैं। ऐसे ही उनके कारण से गुण से पृथक करते हैं, उनके कारण से विशेष है। इसी प्रकार कर्मों में जान लेना चाहिए।