सूत्र :द्वित्वप्रभृतयः संख्याः पृथक्त्वसंयोगविभागाश्च 1/1/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : दो या उससे अधिक संख्या, पृथक्त्व, संयोग और विभाग ये गुण बहुत से द्रव्यों से उत्पन्न होते हैं। आशय यह है कि जहां एक द्रव्य होगा वहां गुण नहीं होंगे।
व्याख्या :
प्रश्न- इनका एक द्रव्य में न रहने का क्या कारण है?
उत्तर- ये गुण स्वाभाविक नहीं हैं जो एक में रहें किन्तु ये संयोग की अवस्था में रहने से नैमित्तिक हैं जब एक से अधिक संख्या वाली वस्तु होगी तब ही दो या दो से अधिक संख्या का प्रयोग होगा। एक में इसका प्रयोग हो ही नहीं सकता। इसी प्रकार संयोग भी जब होगा कि जब वस्तु एक से अधिक होंगी। एक में संयोग कैसा? विभाग भी उसी अवस्था में हो सकता है जबकि एक वस्तु किसी दूसरी वस्तु से मिली रहे। इसी प्रकार पृथक्त्व भी किसी दूसरी वस्तु से मिले रहने पर हो सकता है।