सूत्र :कारणाभावात्कार्याभावः 1/2/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कारण के न होने का भी अभाव होता है। बिना कारण के कार्य की उपत्ति नहीं होती। पूर्व सूत्रों में कार्य कारण को केवल बताया था, अब सूत्र में उनका सम्बन्ध बताया है। जब तक सम्बन्ध न बताया जावे तब तक कार्य नहीं चलता।
व्याख्या :
प्रश्न- सृष्टि अनादि काल से चली आती है, इसलिये कोई किसी का कारण व कार्य नहीं। जब कारण नहीं तो उनका सम्बन्ध कैसा?
उत्तर- यह प्रत्यक्ष दीखता है कि बिना कारण के कोई वस्तु उत्पन्न नहीं हो सकती। कुम्हार विद्यमान हो। मिट्टी विद्यमान हो, परन्तु दण्ड और चाक न हो तो घड़ा उत्पन्न नहीं होगा। जब कि कारण के न होने पर कार्य नहीं होता, यह प्रत्यक्ष हैं, तो उसका खण्डन किसी प्रकार नहीं हो सकता। यदि कारण कार्य नहीं तो ‘‘ममकंन बन गया, या घड़ा बना गया, ऐसा कहना हो नहीं बननता। परन्तु मकानों का बनन, और उसकी नियत सामग्री का होना उस सामग्री के बिना कार्य का न बनना, सिद्ध करता है कि कार्य और कारण दोनों विद्यमान हैं और बिना कारण के कार्य नहीं बन सकता। यदि कारण के बिना कार्य बन सकता जिस प्रकार अभाव से उत्पत्ति मानने वाले मानते हैं तो बिना बीज के भी वृक्ष हो जाता और किसी रोग की चिकित्सा भी नहीं हो सकती, क्योंकि इस समय तो रोग का निदान देखकर उसकी चिकित्सा करते हैं जब रोग का कोई कारण ही न हो तब उसका विरोधी कौन है जिसके द्वारा रोग का नाश किया जावे। अतः कार्य कारण का सम्बन्ध आवश्यकीय है कारण के होने पर कार्य की उत्पत्ति होती है, और कारण के न होने पर कार्य की उत्पत्ति नहीं होती।
प्रश्न- जब कारण विद्यमान हो तो कार्य का होना आवश्यक है, परन्तु ऐसा देखा जाता है कि प्रायः कार्य उत्पन्न नहीं होता इससे विदित होता है कि कार्य कारण का सम्बन्ध नहीं?
उत्तर- जब नियम में यह आवश्यकीय नहीं कि कारण की उपस्थिति में कार्य अवश्य ही उत्पन्न हो, किन्तु कार्य की उत्पत्ति के लिए कारण होना आवश्यकीय है, चाहे कार्य भी उत्पन्न हो चाहे न हो जब हों तब बिना कारण के अकस्मात् नहीं होंगे। आशय यह है कि अभाव से भाव उत्पन्न से नहीं होता किन्तु भाव से भाव की उत्पत्ति होती है। जब आकाश के पुष्प की सुगन्धि को किसी ने नहीं सूंघा, और न बन्ध्या के पुत्र का विवाह किसी ने देखा, इसी प्रकार बिना कारण के कार्य को भी किसी ने नहीं देखा। अब आगे यह दिखाते हैं कि कारण की सत्ता के लिए कार्य की सत्ता की आवश्यकता नहीं, जिस प्रकार सन्तान की उत्पत्ति के लिए माता-पिता का होना आवश्यक है किन्तु माता-पिता की सत्ता के लिए सन्ता की सत्ता की आवश्यकता नहीं।