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वैशेषिक दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

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सूत्र :कार्यकारणयोरेकत्वैकपृथक्त्वाभावादेकत्वैकपृथक्त्वं न विद्यते 7/2/7
सूत्र संख्या :7

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : कार्य और कारण एक नहीं होते क्योंकि उनमें एकत्व का अभाव और भेद भी पाया जाता है क्योंकि जो कारण है वही कार्य है। ऐसा मानने से यह स्वीकार करना पड़ेगा जो तन्तु हैं वही कपड़ा है, यद्यपि बहुत तन्तु मिलने से कपड़ा पैदा होता हैद्व किन्तु एक तन्तु को कोई भी कपड़ा नहीं कहता जिससे मालूम होता है कि तार कपड़से पृथक् वस्तु है क्योंकि कपड़ा बहुत तारों का संगठन है और तार एक है और एक और बहुत को एक सा बतलानाबड़ीभारी भूल है।

व्याख्या :
प्रश्न- यद्यपि यह बात प्रसिद्ध है कि तन्तुओं से कपड़ा और कपालों से घड़ा बनता है, इससे प्रतीत होता है कि तन्तु और कपड़े का बनने से प्रथम भी सम्बन्ध था। क्योंकि यदि कार्य कारण का उत्पत्ति से संबंध न होता तो तारों से घड़ा और कपालों से कपड़ा बन जाता, किन्तु ऐसा नहीं होता, जिससे साफ यह प्रतीत होता है, कि कारण में कार्य छिपा रहता है। उत्तर- जो जिसमें छिपा रहता है वह उससे पृथक् वस्तु होती है। इससे भी कार्य से कारण पृथक् प्रतीत होतो है। उपादान कारण में कार्य के बनने की शक्ति होती है। न कि कार्य होता है। यदि यह विचारा जावे कि एक तारे के अंदर कपड़ा छिपा निक सकता है किंतु निकलता नहीं। इससे साफ प्रतीत होता है, न कि कपड़ा एक तार में मौजूद था, किंतु संयोग से पैदा हुआ है। इसलिए कारण कार्य का भेद मानना चाहिये। यह अवश्य है, कि उपादान कारण और और कर्ता में उस संयोग का ग्रहण करने की शक्ति है। किसी काम की कर्तृव्य शक्ति और वस्तु है औ कार्य और वस्तु है, एक वास्ते कार्य कारण का एक होना ठीक नहीं हो सकता, परन्तु कारण से कार्य किस समय उत्पन्न हुआ है, जिससे पूर्व कर्तृत्व शक्तियें तो उपस्थित थी; किन्तु कार्य न था। प्रश्न- इसमें क्या प्रमाण है, कि कार्य से कारण पृथक् है? उत्तर- घड़े और कपालों का भिन्न-भिन्न होना ही उनके पृथक्तव कारण है। जिस समय तक तक दोनों कपाल तिल न जावें, तब तक उन्हें कोई भी घड़ा नहीं कहता और संयोग होने के पश्चात् कोई भी कपाल नहीं कहता। इससे साफ प्रतीत होता है, कि कपाल और चीज है, और घड़ा दूसरी वस्तु है।