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वैशेषिक दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

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सूत्र :रूपरसगन्धस्पर्शव्यतिरेकादर्थान्तरमेकत्वम् 7/2/1
सूत्र संख्या :1

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : इस दूसरे आन्हिक में यह विषय होंगे। (1) यह गुण में रहते हैं अथवा अनेक में (2) केवल अनेक में रहने वाले गुणों की जांच जैसे गिनती आदि (3) ऐसे ही शब्द और अर्थ के सम्बन्ध की जांच (4) विशेष गुणों से प्रत्येक स्थान में स्थित संयोग के असमवाय कारण एक में रहने वाले गुण की जाँच (5) समवाय की जांच अब संख्या और पृथक्त्व की जांच करते हैं। रूपरसंगधस्पर्श व्यतिरेकादर्थान्तर मेत्वम् ।1। अर्थ- रूप, रस, गन्ध और स्पर्श से पृथक् संख्या है जिसका प्रमाण व्यतिरेक से निकलता है क्योंकि वह संख्यां एक ही वस्तु न रहकर दूसरो में भी पाई जाती है, जैसे कहते हैं (घड़ा एक है) यह संख्या घड़े की विशेषता नहीं क्यों तादाद कपड़े में भी मौजूद हैं।

व्याख्या :
प्रश्न- क्या एक में जो जो एकत्व हैं वह सत्ता की तरह प्रवर्त नहीं? उत्तर- एकत्व सत्ता की तरह प्रवत। नहीं क्योंकि किसी में एकत्व और किसी में बहुत्व देखा जाता है जिस प्रकार सत्ता में न्यूनाधिकता नहीं और नहीं कोई वस्तु सत्ता से रिक्त है, किन्तु एकत्व से उत्पन्न हुई 2 चीजें बहुत सी खाली हैं अतःएव एकत्व से लेकर बहुत्व तक संख्या सत्ता से पृथक् वस्तु है। प्रश्न- पृथक्त्व का जो प्रमाण है वह वह रूपादि से पृथक् है या इन ही में शामिल है।