सूत्र :एकत्वैक-पृथक्त्वयोरेकत्वैकपृथक्त्वाभावोऽणुत्वमहत्त्वाभ्यां व्याख्यातः 7/2/3
सूत्र संख्या :3
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस प्रकार अणु और महत् में उनसे पृथक कोई दूसरी नई उत्पत्ति नहीं है क्योंकि पीछे प्रमाणणित कर चुके हैं, कि गुण में गुण नहीं रह सकता क्योंकि उसमें व्यवहार अर्थात् शब्दार्थ सम्बन्ध दृष्टिगत होता है वह या तो उपचारक है अथवा सम्बन्धी है। किसी विशेष गुण नहीं है।
प्रश्न- यदि कहो कि गुणों और कर्मों से एकत्व का व्यवहार पाया जाता है। इसमें क्या प्रमाण है? कि द्रव्यों में एकत्व है और कर्म में गुण नहीं?