DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
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सूत्र :तथा पृथक्त्वम् 7/2/2
सूत्र संख्या :2

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जिस प्रकार रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि से एकत्व भिन्न वस्तु है, इसी प्रकार पृथक्त्व भीं उनसे भिन्न है। जिस प्रकार (एक घड़ा है) ऐसा कहने से घड़े से भिन्न एकत्व बोध हो जाता है। इसी प्रकार घड़ा कपड़े से पृथक् वस्तु है, ऐसा कहने से घड़े और कपड़े में जो पृथक्त्व अर्थात् वेद धर्म जो दो वस्तुओं में भेद बतलाती है असको भी कहते हैं। पत्येक मनुष्य जानता है, कि घोड़ा और भी भिन्न-भिन्न पशु हैं। घोड़ा गौ और गो नहीं हो सकता है। जिन दो वस्तुओं में अन्योन्या भाव है उनसे साफ पता चलता है, कि यह दो भिन्न-भिन्न वस्तु हैं जो उन दोनों के एक प्रकार का होने से रोकता है।

व्याख्या :
प्रश्न- क्या अन्योन्याभाव पथकत्व है। उत्तर- जिन दो वस्तुओं में अन्योन्याभाव नहीं है उन ही में पृथक्त्व भी सिद्ध होता है। किन्तु पृथक्त्व इस प्रकार के अन्योन्याभाव से पृथक् है। प्रश्न- क्या जिस प्रकार रूपादि से एकत्व और पृथक्त्व भिन् हैं? क्या उनकी असलीयत उनसे भी भिन्न वस्तु है।

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