सूत्र :निःसंख्य-त्वात्कर्मगुणानां सर्वैकत्वं न विद्यते 7/2/4
सूत्र संख्या :4
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कर्म और गुणों में एकत्व नहीं रहता, यह पक्ष है। इसका प्रमाण यह है, कि संख्या से मेरा होने से क्योंकि संख्या गुण है जो द्रव्य में रहता है और गुण में गुण किसी प्रकार नहीं रह सकता और एकत्व गुण है। और नहीं कर्म में गुण रह सकता है, क्योंकि इस आत को पहले प्रमाणित कर चुके हैं, कि गुण केवल द्रव्य में नहीं। बस! स्ंख्या के गुण होने से उसका गुण और कर्मों मे रहना असम्भव है। इसलिए एकत्व को संख्या में गणना करनें से उसका गुण और कर्मों में रहना असम्भव है।
प्रश्न- यदि एकत्व का गुण और कर्म में रहना असम्भव है, तो ऐसा क्यों कहते हैं कि एक रूप है एक रस है। इत्यादि?