सूत्र :युतसिद्ध्यभावात्कार्यकारणयोः संयोगविभागौ न विद्येते 7/2/13
सूत्र संख्या :13
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : बिना सम्भ्बन्ध एक से ज्यादा वस्तमु की उपस्थिति का नाम युत सिद्धि है, अथवा दो पृथक-2 आश्रयों में रहने वाली वस्तु को भी युत सिद्धि कहते हैं परन्तु अवयव और अवयवी में युतसिद्धि नहीं पाई जाती, क्योंकि इन दोनों में सम्बन्ध है। यह बिना सम्बन्ध के उपस्थित नहीं रहते। दूसरे इात्रन दोनों का आश्रय भी एक ही होता है अर्थात् जिस स्थान पर मनुष्य बड़ा है उसी जगह पर मनुष्य के शरीर के अवयव भी हैं, शरीर में संयोग विभाग नहीं हैं, क्योंकि एक आश्रय में सम्बन्ध और भिन्नता दोनों नहीं हो सकती जहां ये पाये जायेंगे वहां साधिकरण नहीं कहलायेंगे।
प्रश्न- क्या शब्द और अर्थ में संयोग सम्बन्ध है।? या और किसी प्रकार का सम्बन्ध है?