सूत्र :कारणे कालः 7/1/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पहिले, पीछे, एक साथ, आगे, पीछे, जल्दी और सुस्ती से आदि का ज्ञान का कारण और गुणों के होने से द्रव्य भी है वह काल है। यह ज्ञान किसी विशेष देश वा स्थान पर नहीं होता, किन्तु प्रत्येक स्थान पर विद्यमान है, इसलिए इसको सबसे बड़ा कहना चाहिए, और इस विचार से भी, जैसा कि कहते हैं कि इस समय (यह उत्पन्न हुआ) ऐसा सम्बन्ध प्रत्येक उत्पन्न होने वाली वस्तु के साथ रहता है, जिससे प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति का काल भी एक कारण है, जिसका हो रहा है और व्यतीत होगा, यह काल के सम्बन्ध में शब्दों का व्यवहार प्रत्येक देश में होता है। कोई देश इससे खाली नहीं जिससे स्पष्ट होता है कि काल सब जगह विद्यमान है। इसके अतिरिक्त घण्टा, मिनट, सैकेण्ड, रात, दिन, सप्ताह, मास और वर्ष आदि भी काल के कारण से प्रत्येक स्थान पर होते ही है, इससे भी काल का सर्वस्थानों पर सिद्ध होता है। यह पूर्व ही सिद्ध कर चुके हैं कि काल को बहुत से बतलाना व्यर्थ है, वास्तव में वह एक एक है, और उपाधि के केारण से उसके बहुत से भेद प्रतीत होते हैं।
सातवें अध्याय का पहला आन्हिक समाप्त।