सूत्र :गुणैर्दिग्व्याख्याता 7/1/24
सूत्र संख्या :24
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रत्येक देश में मनुष्य से को सामान्यतया ओग-पीछे का ज्ञान होने से प्रत्येक सावयव पदार्थ में इस बात के ज्ञात करने से कि यह उससे वरे है अर्थात् समीप है, और वह परे अर्थात् दूर है, इससे दिशा का भी व्यापक अर्थात् विभु होना सिद्ध होता है। परत्व और अपरत्व अर्थात् वरे परे अर्थात् सावयव वस्तुओं के सम्बन्ध से बुद्धि पूर्वक मानी जाती हैं अर्थात् अपेक्षा से हैं। जिस प्रकार देहली काशी से परे और अलीगढ़ उसकी अपेक्षा वरे है, परन्तु कलकत्ते की अपेक्षा काशी वरे है और कलकत्ता परे है। दिशा एक है उसका विभाग उपाधि से होता है, यह पूर्व ही सिद्ध कर चुके हैं कि जो दस दिशा कहलाती हैं वे सब उपाधि के कारण हैं, अब काल को सब जगह रहने वाला और व्यापक सिद्ध करते हैं।