सूत्र :अनित्येऽनित्यम् 7/1/18
सूत्र संख्या :18
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : ये चारों प्रकार के परिमांण नाश होने वाले द्रव्यों में अपने आश्रय द्रव्य के नाश होने से नष्ट हो जाते हैं। किसी विरूद्ध गुण के कारण इनका नाश नहीं होता।
व्याख्या :
प्रश्न- आश्रय के विद्यान रहने पर भी परिमाण का नाश हो जाता है जैसे घट के रहने पर उसका गला टूट जाने से यह ज्ञान होता है कि यह वही घड़ा है।
उत्तर- यह ठीक नहीं है, क्योंकि जिस घड़े का वह परिमाण विद्यान था उसके आरम के नाश के लिए घड़े का नाश होना अवश्य था, परन्तु घड़ा बना हुआ है, अतः किसी वस्तु के किसी अवयव के नाश हो जाने पर वह वस्तु कोई दूसरा पदार्थ नहीं हो जाती क्योंकि परमाणुओं में जो व्यूह रचना है उसके नाश होने से त्रसरेणु से होते हुए सारी वस्तु का नाश नहीं होता। जब ऐसा सामान्यतया देखा जाता है, तो उस ज्ञान में यह वही है कैसे दोष आ सकता है। जिस प्रकार यद्यपि, दीपक की शिखा बदलती जाती है, तो भी सारे अबयवों के नाश न होने से उनके भीतर जो परिमाण है वह भी नाश होने वाला है जिसकी सिद्धि उनके अवयवों की न्यूनाधिकता से होती है, परन्तु परिमाण का नाश उसके आश्रय के नाश से होता हैं
प्रश्न- क्या जिस प्रकार पृथिवी के परमाणुओं में जो छोटपन है, जो आकाशादि में महत् है, उसका भी नाश हो जाता है?