सूत्र :दृष्टान्ताच्च 7/1/13
सूत्र संख्या :13
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यह तो दृष्टान्त के देखने से ही विदित होता है कि वास्तव में आमला, आम और घड़े में अहुत परमाणुओं के संयोग होने से बड़ा बहुत बड़ा और बहुत ही बड़ा कहना चाहिए था। जैसे श्वेत वस्तु में रूप को देखकर श्वेत और बहुतही श्वेत इसके शब्दों का प्रयोग होना चाहिए। जो छोटापन आदि बतलाए वे वास्तव में अपेक्षाकृत ही हैं। वास्तव में प्रत्येक संयुक्त पदार्थ में बड़ाई विद्यमान है। जो परमाणुओं को अधिकता और संयोग से प्रतीत होती है।
प्रश्न- छोटे और बड़े परिमाण में व्यवहार के बल से जो छोटाई बड़ाई बताई जाती है यह किस प्रकार सम्भव हो सकती है, क्योंकि परिमाण अर्थात् छोटा और बड़ा दोनों गुण हैं, और गुण में गुण हो नहीं सकता?