DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
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सूत्र :अणु महदिति तस्मिन्विशेषभावाद्वि-शेषाभावाच्च 7/1/11
सूत्र संख्या :11

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पहले बतला चुके हैं कि व्यवहार में छोटा और बड़ा अपेक्षाकृत है जैसे घड़े की अपेक्षा लोटा छोटा है परन्तु आंवले की अपेक्षा बड़ा है इसलिए प्रत्येक सावयव पदार्थ में बड़े का होना तो स्वाभाविक है, परन्तु जहां छोटा कहा जावे वहां-वहां अपेक्षकृत होगा। जिसमें एक से अधिक परमाणुओं का संयोग है वह परमाणु की अपेक्षा तो बड़ा है परन्तु जिसमें कम परमाणुओं का संयोग है उसकी अपेक्षा छोटा भी है इसलिए परमाणु को छोड़कर और में छोटेपन का व्यवहार है वह अपेक्षाकृत है, इसी प्रकार जो बड़े का शब्द बोला जाता है वह सबसे बड़े को छोड़कर और सबसे अपेक्षकृत है जैसे द्वयणुक का छोटा कहा गया है वह कार्य और अपेक्षाकृत है इसलिए वह छोटेपन अनित्य है, परन्तु परमाणुओं में जो छोटापन है वह कारण और नित्य है। घड़े आदि में उस कारण रूप छोटाई का भी अभाव है क्योंकि उसमें किसी की अपेक्षा अधिक परमाणुओं का संयोग विद्यमान है, इसलिए उनको अपेक्षकृत ही कहना चाहिए। प्रश्न- इनमें छोटा का शब्द जो प्रयोग किया जाता है वह अपेक्षकृत है इसमें क्या प्रमाण है?

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