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वैशेषिक दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :कारण-बहुत्वाच्च 7/1/9
सूत्र संख्या :9

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : कारण के महत् होने से उनके संयोग से महत् गुण उत्पन्न होता है। यद्यपि एक परमाणु में अणु में हरने वाला छोटापन है, परन्तु परमाणुओं के समूह को परमाणुओं की संख्या की अधिकता है, उसी के संयोग से बड़ापन अर्थात् महत् नाम हो जाता है। यदि कोई परमाणु में बड़ापन मानता तो यह प्रश्न उत्पन्न होना सम्भव था, परन्तु यह गुण तो परमाणुओं समुह से उत्पन्न होता है। जैसे, जब दो परमाणु मिलते हैं उनमें जहां एक-एक में स्वाभाविक धर्म अर्थात् छोटे होने का गुण है वहां दोनों में एक दूसरें के गुण एक से एक मिलकर दो होना भी सम्मिलित है जिससे परमाणु द्वयणुक होता है, ऐसे ही 3 द्वयणुक के त्र्युणुक उत्पन्न होता है। वह मोटाई जो त्र्यणुक में विद्यमान है मानों छः परमाणुओं के मिलने से उनकी संख्या का रूपन्तर है। इसी प्रकार बड़ी से बड़ी वस्तु बन जाती है। जैसे सूत्र के एक तार में लम्बाई तो है चैड़ाई कम है, जब उसके साथ दूसरे तार मिले तो चैड़ाई कुछ बढ़ जाती है। इसी प्रकार बढ़ते-बढ़ते एक चैड़ा कपड़ाबन जाता है। अब उस चैड़ाई का कारण एक तो तारों का संयोग है दूसरी तारों की अधिकता है यदि तारे अधिक न होती तो संयोग किस प्रकार होता? क्योंकि संयोग एक से अधिक नहीं होता है, यदि तारों में संयोग नहीं होता तो बहुत से तारों के होने पर भी उनके संयोग के बिना कपड़ का बनना सम्भव नहीं था, इसलिए ऋषि ने बतलाया कि मध्यम परिमाण वाली वस्तुओं में जो महत् उत्पन्न होता है वह बहुत कारणों के संयोग से उत्पन्न होता है। प्रश्न- अणु परिमाण किस प्रकार होता है?