सूत्र :अतो विपरीतमणु 7/1/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इस प्रत्यक्ष से जानने योग्य महत् परिमाण से जो विरूद्ध है सो वह अणु है कि जिस प्रकार बड़ाई दीख पड़ती है इसी प्रकार छोटी वस्तु के दृष्टिगत न होने से छोटाई नहीं दीखायी पड़ती। छूटाई बड़ाई यहां बुद्धि से जानी जाती है। जिस प्रकार महत् कारणों से बनता है ऐसे ही अणु एक और कारण संयोग से रहित है। जितने अधिक परमाणुओं का संयोग होगा उतना ही बड़ा कहावेगा, जिसके विरूद्ध जितना कम परमाणुओं का संयोग होगा उतना ही छोटा कहावेगा, सबसे बड़ा वह ही हो सकता है जिसमें सारे परमाणु आ जावें। सबसे छोटा वह है जिसमें परमाणुओं का संयोग ही न हो अर्थात् सबसे अवयव हो।
प्रश्न- जब संयोग से रहित अणु है तब महत् के विरूद्ध बतलाया गया तो आंवले आदि छोटा क्यों कहा?