सूत्र :अणोर्महतश्चोपलब्ध्यनुपलब्धी नित्ये व्याख्याते 7/1/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रत्येक वस्तु के भीतर छोटा, बड़ा और मध्यम होना पाया जाता है। जिस वस्तु को देखते हैं जब ही उसके रूप का ज्ञान होता है तब ही परिमाण का भी ज्ञान होता है, इसलिए अणु और महत् आदि परिमाण नित्य रहने वाले गुण कहे गये हैं। जैसे यह ज्ञान होता है कि घड़ा पतला है, साथ ही यह ज्ञान भी होता है कि घड़ा छोटा है या घड़ा बड़ा है। इसी प्रमाण से परमाणु तक के परिमाण का अनुमान किया जाता है। क्योंकि द्रव्य में जैसे रूप आदि गुण रहते है; वैसे ही परिमाण भी रहता है और और परिमाण द्रव्य के प्रतीत होने का कारण भी है, क्योंकि कोई द्रव्य जो कि महत् हो तब उसका प्रत्यक्ष होता है, परमाणु का प्रत्यक्ष नहीं होता इसलिए द्रव्य के प्रत्यक्ष होने का कारण होने और द्रव्य के साथ परिमाण का भी प्रत्यक्ष होने से स्पष्ट प्रतीत होता है कि परिमाण गुण है।
व्याख्या :
प्रश्न- यदि परिमाण की घड़ी आदि के रूप से भिन्न कोई गुण न मानकर यह माना जावे कि घट आदि का रूप भी परिमाण है तो क्या हानि है?
उत्तर- यदि ऐसा माना जावे तो (बड़ा लाओ) इस कहने से प्रत्येक घड़े को ले आवें, परन्तु प्रतिदिन इसके विरूद्ध देखा जाता है, इसलिए ऐसा मानना ठीक नहींअतः परिमाण के व्यवहार का सामान्य कारण, और द्रव्य प्रत्यक्ष होने का विषय में रहने वाला सामान्य गुणत्व जिसमें पाया जावे वह परिमाण है।
प्रश्न- वह परिमाण कितने प्रकार का है?
उत्तर- परिमाण चार प्रकार का है-छोटा, बड़ा, सूक्ष्म और स्थूल।
प्रश्न- विभु को परिमाण क्यों नहीं बतलाया?
उत्तर- सबसे बड़ा होने से विभु कहलाता है इसलिए बड़ा कहने से उसका ज्ञान होता है।
प्रश्न- परमाणु भी तो एक परिमाण है, जिस परिमाण वाली वस्तु को परमाणु कहते हैं।
उत्तर- परमाणु सबसे छोटा कहने में सम्मिलित है, इसलिए सारी वस्तुओं के परिमाण इन ही चार के अन्तर्गत हो जाते हैं। उनमे से एक परमाणु से लकर द्वयणुक त्रसरेणु तक छोटे और उससे आगे बड़े के अन्तर्गत आ जाते हैं। कतिपय मनुष्यों के मन में बिल्व (बेल) के बराबर बड़े और आवले के बराबर छोटे परिमाण होते हैं। सबसे छोटा होना और बड़ा होना ये नित्य पदार्थों में रहते हैं, परन्तु जो सावयव और मध्यम परिमाण वाले हैं वे सब अनित्य हैं
प्रश्न- जब अणु में अणु परिमाण अर्थात् छोटापन तो है और बड़ापन नहीं है तो परमाणु से बने हुए कार्य में बड़ाई अर्थात् महत् परिमाण वाला होना कहां से आ जाता है?