DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
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सूत्र :पृथिव्यादिरूपरसगन्धस्पर्शा द्रव्यानित्यत्वादनित्याश्च 7/1/2
सूत्र संख्या :2

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : अर्थ- पृथिवी, जल, अग्नि और वायु जो कि परमाणुओं से मिलकर बनते हैं, उनके गुण गन्ध, रस, रूप स्पर्श ये सब अनित्य हैं क्योंकि ये अनित्य वस्तुओं में पाये जाते हैं। यद्यपि और समवाय पदार्थ में रहने वाले गुण अनित्य ही है, परन्तु वे गुण विरूद्ध गुण के उत्पन्न होने से नष्ट होते हैं। ये चार गुण आश्रय के नाश से ही नाश को प्राप्त होते हैं। उनके नाश का कोई दूसरा कारण नहीं, उनके नाश के बहुत से कारण हैं। आशय यह है कि ये गुण जिन पदार्थों में रहते हैं वे अनित्य हैं इसलिए वे गुण भी अनित्य ही हैं। प्रश्न- क्या जब पृथिवी, जल, अग्नि और वायु नित्य हों तब भी ये अनित्य होंगे?

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