सूत्र :जातिविशेषाच्च 6/2/13
सूत्र संख्या :13
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थ- जाति विशेष का भी जाति विशेष से राग और द्वेष होता है। मनुष्य की इच्छा रखते हैं पशु हरी घास को ही अच्छा समझते हैं, कर्म जाति के पशु कांटों को खाना ही अच्छा समझते हैं। इसमें उस जाति तो केवल एक द्वार है। इसी प्रकार भैंस, ऊंट और घोड़े ये द्वेष होता है, न्यौले का सांप से द्वेष होता है। इसी प्रकार और भी जातियों में विचार से ज्ञात कर सकते हैं।
प्रश्न- धर्म और अधर्म का कारण क्या है?