सूत्र :तत्संयोगो विभागः 6/2/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थ- धर्म-अधर्म से संयोग अर्थात् आत्मा का शरीर, इन्द्रिय और अन्तःकरण के साथ सम्बन्ध होता है जिसकों जन्म कहते हैं। विभाग अर्थात् शरीर का इन्द्रियों से पृथक् होना जिसको मृत्यु कहते हैं। इसलिए यह जन्म और मृत्यु का जो चत्र है उसी का नाम संसार है इसको प्रत्येक भाव भी कहते हैं अर्थात् मरना और जीना। इस मरने-जीने का कारण धर्माधर्म है; धर्मार्ध न हो तो यह चत्र चल ही नहीं सकता। धर्माधर्म का कारण राग-द्वेष है और और उनका कारण मिथ्या-ज्ञान है।
प्रश्न- इस प्रेत्यक भाव का कभी नाश होता है वा नहीं?