सूत्र :इच्छाद्वेषपूर्विका धर्माधर्मप्रवृत्तिः 6/2/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थ- प्राप्त करने में राग से प्रवृत्ति होती है। हिंसा आदि के दुष्कर्मों में द्वेष से प्रवृत्ति होती है। राग अर्थात् इच्छा के कारण यज्ञ-दान और परोपकार के कामों में जो प्रवृत्ति होती है वह धर्म को उत्पन्न करती है। राग-द्वेष से हिंसा आदि दुष्ट की प्रवृत्ति हैं इसलिए महात्मा गौतम जी न्यायदर्शन में प्रवृत्ति का यह लक्षण किया है। जो वाणी, मन और शरीर से काम करता है उसका नाम प्रवृत्ति है। जो वाणी से काम किया जाता है उसका नाम वाचक प्रवृत्ति है जैसे सत्य बोलना, मीठा बोलना, दूसरों के भेले के लिए बोलना पुण्य का कारण है। और झूठ बोलना, कड़वा बोलना और दूसरों को हानि पहुचाने वाली बात बोलना पाप कहाती है।
प्रश्न- धम-अधर्म से क्या उत्पन्न होता है?