सूत्र :उक्ता गुणाः 7/1/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पिछले अध्याय में संसार सागर से तरने और बन्धन में फंसने के कारण धर्म-अधर्म की परीक्षा को बतलाकर अब महर्षि कणादजी गुणों की परीक्षा करते हैं क्योंकि पिछले अध्यायों में गुण का उद्देश्य हो चुका है, विभाग भी हो चुके हैं, लक्षण भी बता चुके हैं, इस अध्याय में परीक्षा करते हैं। अतः लिखते हैं कि-
उक्त गुणाः ।।1।।
अर्थ- रूप आदि 24 गुणों को पहिले बता चुके हैं, जिसमें 17 तो ऋषि ने अपनी जिन्हा से कहे हैं और शेष 7 चकार शब्द से जो आदि-आदि के कर्म में हैं, जाने जाते हैं।
व्याख्या :
प्रश्न- परीक्षा उस वस्तु की जाती है जिसमें सन्देह हो। गुण के होने में कोई सन्देह नहीं उसकी परीक्षा क्यों की जावे?
उत्तर- गुणों के सद्भाव में कोई सन्देह नहीं किन्तु उनके नित्य वा अनित्य होने में तो सन्देह है, इसलिए परीक्षा करना आवश्यकीय है।
प्रश्न- गुण के नित्य वा अनित्य होने की ही परीक्षा होगी वा और किसी प्रकार की भी?
उत्तर- नित्य, अनित्य पाकज, संख्या और परिणाम इन पांच प्रकार के गुणों की परीक्षा इस पहले आन्हिक में होगी।
प्रश्न- रूप आदि गुण नित्य हैं वा अनित्य?