सूत्र :सुखाद्रागः 6/2/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थ- चन्दन आदि की सुगन्ध लगाने, या सुन्दर वस्तु के देखने, अच्छे रस के खाने, सुन्दर राग के सुनने आदि से सुख प्रतीत होता है उससे उस प्रकार की वस्तुओं में सुख या सुख का कारण समझने से राग उत्पन्न होता है। इस प्रकार जिन बुरी वस्तुओं से दुःख मिलता है, जैसे सर्प और कांटे आदि में द्वेष उत्पन्न होता है और द्वेष मोह प्रवृत्ति के कारण से दोष कहाते हैं। महात्मा गौतम जी ने दोष का यही लक्षण किया कि काम में लगाने वाला हो।
प्रश्न- यदि दुःख-सुख से ही राग-द्वेष उत्पन्न होते हैं तो उनके नाश से वे कैसे रहते हैं ?