सूत्र :अयतस्य शुचिभोजनादभ्युदयो न विद्यते नियमाभावाद्विद्यते वार्थान्तरत्वाद्यमस्य 6/2/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थ- जो मनुष्य यम रहित अर्थात् हिंसक है, असत्वादी है परध्न का हरने वाला, व्यभिचारी, अभिमानी, इन्द्रियों के विषयों में फंसा हुआ है ऐसे मनुष्य के खिलाने से धर्म नहीं होता, किन्तु पाप होता है, क्योंकि ऐसा करने वालों से तिने पाप होहोते हैं उनका भाग उनके सहायकों पर भी पड़ता है। संयमी को खिलाने से धर्म का साधन होता है। आशय यह है है कि चाहे पुण्य न करता हो उसको भोजन करावे, परन्तु पापी को कभी न खिलावे।
प्रश्न- क्या केवल यम ही फलदायक है, शुद्ध भोजन फलदायक नहीं है?