सूत्र :व्यतिरेकात् 1/1/22
सूत्र संख्या :22
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : द्रव्य की उत्पत्ति के समय कर्म का अभाव होता है अर्थात् कर्म का नाश हो जाता है। क्योंकि केवल संयोग को उत्पन्न करके नाश को प्राप्त हो जाता है और द्रव्य के अनन्तर होता है, अतः द्रव्य का कारण कर्म नहीं हो सकता। कारण का लक्षण बता चुके हैं। कि जो नियत हो और पूर्व में उपस्थित हो। जब द्रव्य की उत्पत्ति के पूर्व कर्म विद्यमान नहीं तो कारण कहला नहीं सकता। आशय यह है कि कर्म ससंयोग उत्पन्न होते ही नाश हो जाता है और द्रव्य संयोग के उपरान्त होता है। इसमें कोई नहीं कि जो उत्पत्ति के समय विद्यमान ही न हो वह कारण कहला सें।
व्याख्या :
प्रश्न- कर्म को उत्पत्ति का कारण मानना उचित है, क्योंकि छः कारणों में कर्म को भी गिनाया है। और कर्म कत्र्ता से उत्पन्न होता है यदि कर्म ही उस वस्तु की उत्पत्ति का कारण न होगा तो कत्र्ता किस प्रकार कारण कहला सकेगा? वे छः कारण ये हैः-
1-कत्र्ता 2-कर्म 3-कारण 4- सम्प्रदान 5-उपादान और छः अधिकरण।
उत्तर- उन छः कारणों का कर्म हमारे कर्म का पर्यायवाची नहीं हैं। अतः द्रव्य की उत्पत्ति से पूर्ण न होने से कर्म को कारण नहीं कह सकता उस में कर्म का लक्षण ही नहीं घट सकता।