सूत्र :यदिष्ट-रूपरसगन्धस्पर्शं प्रोक्षितमभ्युक्षितं च तच्छुचि 6/2/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थ- जो रूप, रस, स्पर्श और गन्ध श्रुति वेद और स्मृति धर्मशास्त्र ने लाभदायक बतलाये हैं वे शुद्ध हैं। जैसे जो धन न्याय से कमाया जाता है वह पवित्र है। जो वेद मंत्रों में बतलाये हुए निय के साथ पवित्र किया जाता है वह शुद्ध है। जिस प्रकार बतलाया गया है कि ब्राह्यण यज्ञ कराने और विद्या पढ़ाकर गुरू दक्षिणा लेने से धन प्राप्त करे, यह धन पवित्र है। इसके विरूद्ध कमाया हुआ धन अपवित्र है। इसी प्रकार क्षत्री जो प्रजा की रक्षा करके धन प्राप्त करता है वह धन पवित्र है। इसी प्रकार प्रत्ये वस्तु वेद अनुसार शुद्ध कहलाती है?
प्रश्न- अशुद्ध किसे कहते हैं?