सूत्र :भावदोष उपधादोषोऽनुपधा 6/2/4
सूत्र संख्या :4
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थ- इस सूत्र में ऋषि उपधा का लक्षण करते हैं। भाव में जो दोष है उसको उपधा कहते हैं जै। राग, द्वेष, प्रमाद, अश्रद्धा, अहंकार, अभिमान और निदा आदि। ये मन के दोष हैं, जो उपधा नाम से कही जाती है। और उसके विरूद्ध जो कर्म करने योग्य है और जो गुण ग्रहण करने के योग्य हैं। जैसे ज्ञान, वैराग्य, सत्संग श्रद्धा, संयम, प्रेम, गाम्भीर्य या मनु महाराज के बतलाये दश लक्षण, ये अनुपधा शब्द से ग्रहण किये जाते हैं ये दोनों प्रकार के गुण और कर्म धर्म अधर्म के कारण होते हैं।
प्रश्न- जो शुद्धि बतलाई गई है उससे क्या क्या तात्पर्य है? उसकी पहचान किस प्रकार हो सकती है?