सूत्र :अशुचीति शुचि प्रतिषेधः 6/2/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थ- जो शुद्ध द्रव्य है उसके विरूद्ध अशुद्ध हैं अर्थात् वेद शास्त्र ने जैसा लिखा है उसके प्रतिकूल को अशुद्ध मानना चाहिये। अर्थात् ब्राह्यण जो धन व्यापार द्वारा प्राप्त करते हैं वह अशुचि होगा।
प्रश्न- क्या इसके अतिरिक्त और किसी प्रकार से अपवित्र नहीं होगा?