सूत्र :चातुराश्रम्यमुपधा अनुपधाश्च 6/2/3
सूत्र संख्या :3
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के कर्मों के कामों का अदृष्टफल होता है। परन्तु उनमें अधिकतर विचारों पर भी ध्यान देनो चाहिये, क्योंकि यदि शुद्ध इच्छा से एक कार्य किया जावे उससे परिणाम बुरा होतो उससे बुरा अदृष्ट उत्पन्न नहीं होगा। जैसे एक वेद्य किसी के फोड़े को चीरता है, किसी प्रकार की न्यूनता हो जाने से रोगी मर जाता है तो इस अवस्था में वैद्य दोषी नहीं होगा और न ही बगले जन्म में उसको उसका बुरा फल मिलेगा यद्यपि मरने वाला उसके अस्त्र से मरा है। आशय यह है, कि चारों आश्रमों कके कर्म श्रद्धा से करने से उत्तम मिलता है उसके विरूद्ध करने से बुरा फल मिलता है परन्तु यह दोनों कर्म श्रद्धा की न्यूनाधिकता से भिन्न-भिन्न फल उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न- इस सूत्र में उपधा शब्द जिसके अर्थ श्रद्धा लिये गये उसका क्या आशय है।
उत्तर- यहां उपधा शब्द से कुल अधमों के साधनों का लेना द्धषि को अभिप्रेत है। उसका विवरण अगले सूत्र में द्धषि स्वयं करेंगे।