सूत्र :विशिष्टे आत्मत्याग इति 6/1/16
सूत्र संख्या :16
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि दूसरा अपने से अधिक धर्मात्मा हो तो उसकी रक्षा करना और अपने को छोड़ देना ही अच्छा है। उस अवस्था में अपनी रक्षा करना पाप है, क्योंकि उससे संसार में अधिक उपकार होना सम्भय है। इस सूत्र का तात्पर्य वहां पर लगता है कि जहां दोनों बराबर के विद्वान् मृत्यु के संकट में पड़े हों और उनमें से एक का बचना सम्भव हो तो किसकों बचाना चाहिये तो उत्तर ऊपर लिखा हुआ है। आशय यह है कि वेदों में जो कुछ लिखा है सब बुद्धि पूर्वक करने के लिये हैं।
छठे अध्याय का पहिलर आह्निक समाप्त हुआ।