सूत्र :दृष्टादृष्टप्रयोजनानां दृष्टाभावे प्रयोजनमभ्युदयाय 6/2/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रश्न- बहुत ऐसे कर्म हैं कि जिनका फल संसार में दृष्टिगत नहीं होता?
दृष्ट अर्थात् प्रत्यक्ष फल वाला कर्म जैसे खेती, व्यवहार और नौकरों आदि अदृष्ट अर्थात् जिसका फल संसार में दृष्टिगत न हो, होते हैं। जिस कर्म का फल प्रत्यक्ष में नहीं मिलता वह तत्वज्ञान के प्राप्त करने के लिए हैं वेद में निष्काम करने के लिए आज्ञा दी है और उस कर्म का फल संसार में दृष्टिगत नहीं होता जिस पर निर्बुद्धि मनुष्यों को सन्देह होता है कि यह कर्म निष्फल गया। ऋषि इस भ्रम को दूर करते है कि निष्काम कर्म अन्तःकरण की बुद्धि के द्वारा तत्र्वज्ञान के लिए किया जाता है। दृष्टफल न होने से वह वह कर्म निष्फल नहीं जाता किन्तु उससे अन्तःकरण का मल दूर होता है। दृष्ट कर्म से तात्पर्य इसी जन्म में भोगने योग्य कर्म से है जिसको मोक्तव्य कहते है और अदृष्ट से आशय उन कर्मों से है जो आने वाले दुःखों से बचने के लिए किए जाते हैं, जिनका नाम कर्मत्व या धर्म है।
व्याख्या :
प्रश्न- जिन कर्मों का फल इस समय न हो उनके आगे फल देने का क्या प्रमाण है?
उत्तर- जो कर्म इस दुनिया के भोग के लिए किये उनके भी दो भेद हैं। एक वह जिसका फल तत्काल होता है जैसे खना-पिना आदि, दुसरे वह जिसका फल आग होता है जैसे बोना पड़ना आदि जैसे आबोकर महीनों उपरान्त उठाते हैं बरसों के उपरान्त फल खाते हैं। यह दृष्टान्त दैव ने कर्मों का फल आगे होने के प्रमााण में प्रस्तुत कर दिया है यदि कोई मनुयष् यह विचार कर ले कि कर्मों का फल आगे को नहीं होता, केवल वर्तमान में ही होता है, तो खेती भी न बोये, वाटिका कभी न लगायें।
प्रश्न- वाटिका और खेती का फल तो प्रत्यक्ष बोने से काटते हुए देखते हैं परन्तु अदृष्ट कर्मों का फल तो किसी को नहीं दीखता।
उत्तर- जिस प्रकार खेती बोने वाला फल उठाया हुआ देखा जाता है ऐसे ही पूर्व कर्मों का फल मिलता हुआ भी देखा जाता है। एक जीव राजा के घर उत्पन्न होता है और सारी सामग्री बिना कमाये प्राप्त कर लेता है। दूसरा ऋणी के घर में उत्पन्न होता हैं और जन्म भर ऋण चुकता रहता हैं इससे स्पष्ट विदित है कि जिसने पूर्व जन्म में अच्छे कर्म कि ए हैं अर्थात् बोया है उसको फल पका पकाया मिलता है, जिसने नहीं किये उसको नहीं मिलता।
प्रश्न- आगे के लिए फल उत्पन्न करने वाले कौन नहीं मिलता।