सूत्र :हीने परे त्यागः 6/1/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब ऐसी अवस्था हो कि एक ही मनुष्य की जान भोजन से बचती हो तो उस समय बुद्धि से विचार लेना चाहिए कि दो में से कौन संसार के लिए अधिक उपकार करने वाला है, कौन ईश्वर की आज्ञाओं का ठीक-ठीक पालन करने वाला है, यदि यह निशचय हो जावे कि जो दूसरा आया है, वह संसार का उपकार करने और धर्म के कार्यों में हीन है तो उसको न देकर स्वयं खाले, क्योंकि जीवन दूसरों की भलाई के लिए है। जिससे संसार को अधिक लाभ पहुंचे उसका जीवित रहना अच्छा है। श्ंकर मिश्र ने इस सूत्र का यह घर पर चोरी करने जावे और घरवाला उसे चोरी करने से रोके और वह गुण कर्म में अपने न्यून हो तो उसे मार डालना चाहिये। ये अर्थ वैदिक सिद्धान्तों के नितान्त विरूद्ध है?
यदि आने वाला अतिथि गुणों में बराबर हो और उपकार भी समान ही हो और भोजन एक ही के लिए हो तो क्या करे?