सूत्र :तथा विरुद्धानां त्यागः 6/1/13
सूत्र संख्या :13
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो मनुष्य धर्म के विरोधी हैं उनसे कदापि दान लेने देने का व्यवहार नहीं करना चाहिए क्योंकि उनसे व्यवहार करने में दोष पूर्व ही बतला चुके हैं। कुछ लोग इस सुत्र का यह अर्थ करते हैं कि जब मनुष्य क्षुधा से मरता हो, जिसका उल्लेख पीछे आ चुका है और वह किसी के घर में चोरी करने जावे, उस समय जो उसको चोरी करने से रोके तो उस रोकने वाले को मार देने में भी पाप नहीं होता, परन्तु यह अर्थ यथार्थ नहीं है क्योंकि वेदों में किसी का सत्व लेना पाप बताया है, और जो अपने सत्व की रक्षा करता है जिसको बिना किसी दोष के अपने स्वार्थ के लिए मार डालना अवैदिक कर्म हैं जो कि किस प्रकार भी निर्दोष नहीं हो सकता। इसलिए यह अर्थ ठीक है कि मनुष्य धर्म के विरूद्ध हो उनका दान और उनसे दान लेना त्याग दे।
प्रश्न- यदि एक मनुष्य के खाने योग्य भोजन बना हो तो उस समय जो दूसरा आ जावे तो क्या करे?