सूत्र :तेजसो द्रव्यान्तरेणावरणाच्च 5/2/20
सूत्र संख्या :20
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रकाश पर दूसरे द्रव्य का परदः पड़ जाने से दूसरें द्रव्य के चलने पर इस तरह का आवरण का अर्थात् परदः आगे-आगे चला जाता है, जिससे छाया में चलने का भ्रम होता है। इसलिए वह केवल प्रकाश का अभाव ही है वास्तव में कोई द्रव्य नहीं और उसमें चलना भी नहीं, क्योंकि चले तो साया चलता हुआ प्रतीत होता है, यदि न चले तो नहीं चलता ज्ञात होता, इसलिए चलना किसी मनुष्य या किया वस्तु में है, छाया में केवल भ्रम होता है, इसलिए जहां प्रकाश न हो अर्थात् तेज परमाणु स्थूल अवस्था में प्रकाश के योग्य न हों वही अन्धकार कहलाता है। इन दो सूत्रों में अन्धकार का प्रकरण समाप्त हो गया।
प्रश्न- दिशा, काल और प्रकाश में गति है वा नहीं?