सूत्र :अपसर्पणमुपसर्पणमशित-पीतसंयोगाः कार्यान्तरसंयोगाश्चेत्यदृष्टकारितानि 5/2/17
सूत्र संख्या :17
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब शरीर के उत्पन्न करने वाले प्रारब्ध का नाश हो जाता है, तो शरीर से प्राण और मन निकल कर दूसरे शरीर में जाकर उत्पन्न होते हैं वहां और मन और प्रवेश करना ही खने-पीने का कारण होता है वह दूसरे गर्भ और शरीर का कारण होता है। इस संयोग का कारण ही, यह सब काम, अदृष्ट अर्थात् किये हुए कर्मों के फल से उत्पन्न होते हैं?
व्याख्या :
प्रश्न- अपसर्पण किसको कहते हैं?
उत्तर- मन और प्राण एक शरीर में से निकलना अपसर्पण कहाता है।
प्रश्न- उपसर्पण किसको कहते हैं?
उत्तर- प्राण और मन का जीव के साथ किसी दूसरे शरीर में प्रवेश करना उपसर्पण कहाता है। आशय है, कि शरीर के भीतर रजवीर्य का मिलना, उनका गोला बनना, जीव का प्राण मन के साथ एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में जाना सब अदष्ट अर्थात् पूर्व कर्मों के फल से होता है।
प्रश्न- क्या प्राण और मन जीव के साथ एक शरीर को छोड़कर दूसरे के बिना रह सकते ?
उत्तर- मन और प्राण से सम्बन्ध रखने वाला शरीर के बिना नहीं रह सकता।
प्रश्न- यदि दूसरे शरीर का पाना आवश्यकीय है तो मोक्ष किस प्रकार हो सकती है।