सूत्र :गुणैर्दिग्व्याख्याता 5/2/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस प्रकार गुरूत्व आदि गुण कर्म का समवाय कारण नहीं, क्योंकि ये अमूत्र्त हैं। और आधार तो वह भी हो सकता है कि जो समवाय कारण न हो। यह निम नहीं, कि जो समवाय कारण हो वहीं आधार हो-जैसे कहते हैं कि कुण्ड में वेर हैं, यहां कुण्ड बेरों का समवाय कारण नहीं किन्तु आधार है। बन में सिंघ का नाद है। यहां भी बन केवल आधार है समवाय कारण नहीं। कूड़े में दही है, घर में आदमी है। ऐसे ही अनेक उदाहरण हैं। यहां केवल आधार ही होता है समवाय कारण नहीं होता। इसी प्रकार दिशा आधार ही है।
प्रश्न- काल तो समवाय कारण है?