सूत्र :कारणं त्वसमवायिनो गुणाः 5/2/24
सूत्र संख्या :24
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : असमवाय कारण होतेग हैं, न समवाय कारण, जिससे कर्म परम्परा आरम्भ हुई। और असमवाय कारण होने का गुण भी तो कार्य के साथ ही मिला रहता है। जैसे आत्मा और मन के संयोग को आत्मा के स्वाभाविक गुण में पाते हैं और कभी संयोग और विभाग को शब्दों में कारण में अर्थ को मिला हुआ पाते हैं-जैसे कपाल (ठिकड़े) कास जो रूप है वही घट के रूप में असमवाय कारण से रहता है।
व्याख्या :
प्रश्न- समवाय कारण किसे कहते हैं?
उत्तर- जो कार्य के साथ प्रत्येक समय रहता है, कभी कार्य से पृथक् नहीं होता जैसे दो कपालों का मिलाप घड़े का समवाय कारण हैं।
प्रश्न- असमवाय कारण किसे कहते हैं?
उत्तर- जिसका कार्य के साथ रहना आवश्यकीय नहीं, उसके अतिरिक्त भी रह सकते हैं। जैसे कपाल घड़ा बनने के बिना भी रह सकते हैं।
प्रश्न- ‘‘यहां कर्म उत्पन्न होता है’’ और अब कर्म उत्पन्न होता है,’’ ऐसा कहने से विदित होता है, कि दिशा और काल भी कर्म का समवाय कारण है, उसको आधार क्यों बतलाते हैं।