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वैशेषिक दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

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सूत्र :अग्नेरूर्ध्वज्वलनं वायोस्ति-र्यक्पवनमणूनां मनसंश्चाद्यकर्मादृष्टकारितम् 5/2/13
सूत्र संख्या :13

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : ये कर्म जीवों का अदृष्ट फल देने के लिये सृष्टि के आरंभ से कर्म देने वाले की ओर से होते हैं। आशय यह है कि परमात्मा इन सब भूतों में क्रिया देकर उनकी क्रियाओं का नियमानुसार संचालन करते हैं, और नैमित्तिक क्रियायें भी होती हैं उनका कारण जीवों का अदृष्ट ही है, और परमात्मा की दी हुई प्रथम क्रिया से जो वेग का संस्कार उत्पन्न होता है कि अब क्रियायें हो रही हैं, क्याकि जहां प्रत्यक्ष से कारण का पता लग जावे वहां अनुमान आसदि से दूसरा कारण ढूंढना ठोक नहीं। इन सूत्रों से स्पष्ट विदित होता है, कि जो पृथिवी की नैमित्तिक क्रियाओं से जो जीवों को हानि लाभ पहुंचाता है, वह जीवों के कर्मा के फल से नियत है, और उसके आग से जल कर मरने वालों की अकाल मृत्यु मान लिया करते हैं उन्हे महर्षि कणादके इन सूत्रों पर विचार करना चाहिये। प्रश्न- जो मन में कर्म बतलाया जाता है उसमें कोई प्रमाण नहीं?