सूत्र :नोदनादाद्यमिषोः कर्म तत्कर्मकारिताच्च संस्कारादुत्तरं तथोत्तरमुत्तरं च 5/1/17
सूत्र संख्या :17
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : तीर में जो आरम्भ में क्रिया होती है। वह नोदन से होती है, अर्थात् क्रिया उत्पन्न करने की शक्ति से होती है। उस पहिले कर्म से तीव्रता से चलने वाला संस्कार उत्पन्न होता है। वह तीव्रता से चलती हुई चीज को देखने से स्पष्ट प्रतीत होता है, उस संस्कार से उस तीर में कर्म उत्पन्न होता है, और उस कर्म से दूसरा कर्म, इसी प्रकार त्रम से क्रिया करता हुआ तीर चला जाता है। आशय यह है, कि जब तक चलता हुआ तीर गिरता नहीं तब तक संस्कार त्रम से उस में क्रिया उत्पन्न करता रहता है। अर्थात् कर्म सन्तान उत्पन्न होती चली जाती है और उपनी उत्पन्न किये संयोग से कर्म का नाश होने पर संस्कार वे दूसरा कर्म उत्पन्न होने के कारण, संस्कार एक ही कर्म की सन्तान-कर्म परम्परा उत्पन्न करने का कारण है। संस्कार की सन्तान नहीं होती इसलिए संस्कार को एक वचन कहा है।
प्रश्न- यदि एक ही संस्कार कर्म की उत्पत्ति कर्म की उत्पत्ति का कारण हो तो कभी तीर पृथ्वी पर न गिरे, क्योंकि काम का उत्पन्न करने वाला संस्कार विद्यमान है।