सूत्र :तथा दग्धस्य विस्फोटने 5/1/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इसी प्रकार छः प्रकार के दोषों से जला हुआ (दग्ध) जो आतताई है, उसके मारने में भी दोष नहीं है। आशय यह है, कि जहां दूसरों की रक्षा के विचार से किसी अन्यायी को मारा जावे तो उस अवस्था में जो कर्म होगा, यद्यपि वह प्रयत्न विशेष से होता है तो भी हानि पहुंचाने के विचार न होने से पुण्य पाप का कारण नहीं होता। अपनी आत्मा की रक्षा के लिए भी यदि किसी ऐसे मनुष्य को मारा जावे,जिसके बिना मारे अपनी जान न बचे, उसका भी पाप नहीं। ऐसे बिना दूसरें को हानि पहुंचाने के विचार के जो कर्म होते हैं वे पाप पुण्य का कारण नहीं हो सकते। यदि दुग्ध का आशय ज्ञान अग्नि से दग्ध, जीवन मुक्त लिया जावे, तो वो भी उसके जो कर्म हैं वे पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार दैवी नियमानुसार होने के कारण भी पाप पुण्य का कारण नहीं होते।
व्याख्या :
प्रश्न- जिन छः दोषों से आवयायी होता है वे छः दोष कौन से है।
उत्तर- यदि किसी घर में आग लगाने वाला, दूसरें को विष देने वाला, हथियारों से मारने वाला, डाकू धन छीनने वाला खेत छीनने वाला और स्त्री को छीनने वाला ये छः आततायी हैं। इसको मारना राजा को उचित है और किसी समय पर अपनी रक्षा के लिए दूसरा मारने वाला पापी नहीं।
प्रश्न- बिना प्रयत्न विशेष के कर्म किसी प्रकार हो सकता है?