सूत्र :तृणे कर्म वायुसंयोगात् 5/1/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : घास और फल आदि के वृक्ष और सारे वनस्पति या झण्डे आदि जो क्रिया करते हैं, वह क्रिया भी वायु के कारण होती है, उसमें भी प्रयत्न का कोई सम्बन्ध नहीं होता। आशय यह र्है कि जिस वस्तु में करना, न करना और उलटा करना पाया जावे वहां तो समझना चाहिए कि जीवात्मा के कारण प्रयत्न विशेष काम कर रहा है जहाँ उसके विरूद्ध हो वहां अग्नि जल और वायु आदि के कारण, जो परमात्मा के नियम से क्रिया होती है, उसी कारण समझना चाहिए।
व्याख्या :
प्रश्न- प्रकृति में क्रिया स्वाभाविक है वा नैमित्तिक? यदि नैमित्ति है तो उसका कारण क्या है?
उत्तर- प्रकृति में क्रिया स्वाभाविक नहीं, किन्तु नैमित्तिक है। जो कि परमात्मा के नियम से होती है। जिस प्रकार घड़ी की सारी सुइयाँ और चक्र घड़ी साज के नियम और चाबी देने से क्रिया करती है और लौटकर उसी स्थान पर आ जाती है। ज बवह उत्पन्न की हुई हक्रिया बन्द हो जाती है तब घड़ी भी बन्द हो जाती है।