सूत्र :आत्मकर्म हस्तसंयोगाच्च 5/1/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यहां आत्मा शब्द से तात्पर्य सारे शरीर से है, उपचार से शरीर को आत्मा लिखा है कि सारे शरीर में जो क्रिया होती है उस समय वह हाथ के संयोग से होती है। आशय यह है कि मूसल तो भारी होने से पृथ्वी की आकर्षण शक्ति से नीचे को गिरता है और उस मसल के साथ लगा हुआ होने से हाथ में भी वह हरकत आ जाती है, जैसे कि अंजन के साथ लगी हुई होने से तमाम गाड़ियां क्रिया करती हैं, और हाथ के संयोग से सारे शरीर में क्रिया होती है। जिस प्रकार एक इंजन के संहयोग से दूसरी गाड़ी चलती है। और दूसरी गाड़ी के संयोग से तीसरी गाड़ी चलती है ऐसे ही सारी की सारी चलती हैं। यद्यपि चलाने वाली शक्ति जो भाप है उसका सम्बन्ध केवल इंजन से है परन्तु क्रिया संयोग से सारी गाड़ियों में होती है। इसी प्रकार पृथ्वी का आकर्षण केवल मूसल पर होता है लेकिन संयोग से हाथ और सारा शरीर क्रिया करता है। और यह भी तात्पर्य है कि आत्मा में जो क्रिया होती है वह शरीर के सम्बन्ध से होती है क्योंकि वह किसी कारण द्वारा ही क्रिया करने वाला है। बिना कारणों के अर्थात् बिना शरीर के वह क्रिया कर भी सकता अब उन क्रियाओं का वर्णन करते हैं कि जिसमें किसी प्रकार के प्रयत्न की अपेक्षा नहीं यद्यपि मूसल आदि के गिरने की क्रिया भी प्रयत्न की अपेक्षा नहीं रखती, परन्तु जब तक प्रयत्न से मूसल ऊपर न जाये तब तक गिर नहीं सकता।