सूत्र :संयोगाभावे गुरुत्वात्पतनम् 5/1/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : संयोग इस शब्द से सारी रूकावटों से तात्पर्य है, अर्थात् रूकावट के न होने से भारी होने के कारण वस्तु ऊपर से नीचे गिरती है। जब तक रूकावट हो तब तक नहीं गिरती यहां गिरने में एक रूकावट तो संयोग ही है। भारी वस्तु किसी वृक्ष आदि में बन्धी होने से नहीं गिरती। उसके न गिरने में वही संयोग ही कारण है।
व्याख्या :
प्रश्न- जो पक्षी अन्तरिक्ष में उड़ते हैं उनमें न तो किसी से संयोग होता है, और वे भारी भी होते हैं, वे क्यों नहीं गिरते?
उत्तर- वहां पर प्रयत्न, जो गिरने से पृथक् रहने के लिए पक्षी करते हैं वह, गिरने से रोकता है। दूसरे वह अपने पेरों को फैलाकर अपने शरीर को इस प्रकार का बना लेते हैं, कि उसका बोझ नीचे की वायु से कम हो जाता है, इसलिए वायु में विचरते हैं, इसी प्रकार बहुत सी रूकावटें गिरने से रोकने वाली हैं, जिनको महर्षि कणादजी ने संयोग शब्द से दिखाया है। जब ये रूकावटें न हों तब भारी वस्तु नीचे गिरती हैं। जिन वस्तुओं में गुरूत्व नहीं अर्थात् जिन पर पृथ्वी की आकर्षण शक्ति का प्रभाव नहीं, वे नहीं गिरते, जिस प्रकार अग्नि को शिखा सदैव ऊपर का उठती है।
प्रश्न- यदि बोझ (गुरूत्व) के कारण ही गिरना माना जावे तो गेन्द ऊपर क्यों जाती हैं, और घूमती हुई नीचे को क्यों आती है?