सूत्र :तथा हस्तसंयोगाच्च मुसले कर्म 5/1/2
सूत्र संख्या :2
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस प्रकार आत्मा के संयोग और प्रयत्न से हाथ में क्रिया होती है उसी प्रकार हाथ के संयोग से ऊखल में धान कुटने वाले मूसल-मूसल में, धान कूटते समय होती है। महर्षि कणादिजी सूत्र में ‘‘च’’ से बतला है कि गिरने में भारी होना भी कारण है अथाग्त् जब मसूल नीचे की ओर से ऊपर को जाता है तो उसमें आत्मा के प्रयत्न से हाथ में क्रिया और हाथ के संयोग से मूसल में क्रिया होती है, परन्तु नीचे जाते समय भारी होने के कारण वह गिर जाता है। वहां भारी होना गिरने का कारण है। आशय यह है कि ऊपर चलने में प्रयत्न से कर्म होता है, और नीचे पृथ्वी का आकर्षण से गुरूत्व के कारण गिर सकता है। उसमें प्रयत्न की विशेष आवश्यकता दो क्रियायें होंगी-एक तो तो गेद का ऊपर की ओर जाना और दूसरा आत्मा के प्रयत्न और हाथ के संयोग से हुआ है और नीचे की ओर आना भारी होने के कारण है। इस स्थल का मूसल और गेंद समवाय कारण हैं और प्रयत्न से क्रिया करके जो हाथ का मूसल से संयोग माना है वह असमवाय कारण है। आत्मा का प्रयत्न और भारी हाथ निमित्त कारण है।