सूत्र :अभिघातान्मुसलसंयोगाद्धस्ते कर्म 5/1/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे मूसल के गिरने से उसके मुंह पर लगा हुआ लोहा को गिरता है ऐसे ही मूसल से लगा हुआ हाथ भी उसके साथ ही नीचे को गिरता है। इस सूत्र में अभिघात शब्द से वह संस्कार अभिप्रेत है जो गिरने से उत्पन्न होता है। उपचार से अभि शब्द कहा गया है। आशय यह है कि मूसल की अति शीघ्र गति से जो गिरने में उत्पन्न होती है मूसल में एक तम का संस्कार उत्पन्न होता है और उस संस्कार के कारण हाथ और मूसल के सहयोग से जो समवाय कारण है हाथ में नीचे गिरता है वह गिरना आत्मा की सांकल्पिक क्रिया से नहीं होता आश्य यह है कि उस गिरने का कारण हाथ और मूसल का मिलना है आत्मा की सांकल्पिक क्रिया उसका समवाय कारण नहीं क्योंकि मूसल के गिरने के साथ का नीचे जाना आतम संकल्प से पृथक है।
प्रश्न- जब कि सारे शरीर या उसके किसी अंग में क्रिया होती है वह आत्मा के प्रयत्न से होती है तो ऐसे समयों पर ऐसा क्यों जाना स्वीकार करते हो प्रयत्न के ही मूसल के साथ नीचे चला जाना स्वीकार करते हो और हाथ सो शरीर में भी क्रिया होती है?