सूत्र :अभिघातजे मुसलादौ कर्मणि व्यतिरेकादकारणं हस्तसंयोगः 5/1/3
सूत्र संख्या :3
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब मूसल नीचे गिरता है, यद्यपि उस समय हाथ का भी संयोग होता है, परन्तु गिरने में भारी होने के अतिरिक्त जिससे पृथ्वी की आकर्षण शक्ति नीचे गिरती है, हाथ का सम्बन्ध उसका कारण नहीं होता हैं, क्योंकि गिरते समय आत्मा के प्रयत्न की आवश्यकता नहीं। उसकी युक्ति यह है कि चाहे हाथ का संयोग हो या न हो वह अवश्य ही गिरेगा। जब हाथ के बिना उसका गिरना आवश्यकीय है क्योंकि यदि गिरते समय प्रयत्न होता है तो वह उसको नीचे गिरने से रोकता न कि गिराता, क्योंकि प्रयत्न का प्राकृतिक शक्ति के विरूद्ध ही प्रयोग किया जाता है या प्राकृतिक आकर्षण को उपने बल से चलाने में उसका प्रयोग होता है। इससे यह भी परिणाम निकलता है कि मनुष्य को उन्नति करने में यत्न करने की आवश्यकता है और यदि उन्नति का यत्न न किया जावे तो अवनति स्वयं ही हो जाती है, क्योंकि जिस प्रकार भारी वस्तुओं को आकर्षण शक्ति से पृथ्वी अपनी ओर प्रत्येक समय खींचती है, उसे गिराने की कोई आवश्यकता नहीं, इसी प्रकार विषयों की आकर्षण शक्ति इन्द्रियों को बराबर अपनी ओर खींचती है, यदि आत्मा इन्द्रियों को विषय से रोकने का काम न करे तो बलात् आत्मा का विषयों की ओर ले जायेगी। जिस प्रकार भारी वस्तुओं में गुरूत्व पृथ्वी पृथ्वी की आकर्षण शक्ति से है, इसलिए वह वस्तुओं को अपने कारण पृथ्वी की ओर ले जाता है, इसी प्रकार इन्द्रियां और मन पंचभूतों से उत्पन्न होते हैं और वह प्रत्येक वस्तु को भौतिक विषयों की आर ले जाते हैं, इसलिए जो लोग ऐसा मानते हैं कि यदि हम बुरा काम न करें तो हमको संध्या अग्नि-होत्र आदि शुभ कर्म करने की क्या आवश्यकता है, वह बड़ी भारी भूल करते हैं क्योंकि बुराई उनको अवश्य अपनी ओर खींच लेगी।