सूत्र :संज्ञाया अनादित्वात् 4/2/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : गौणिक नाम जो गुण के कारण से रखे जाते हैं और प्रत्येक सृष्टि में एक से होते हैं, जैसे अग्नि आदि जिसको संस्कृत में यौगिक कहा गया है। इसलिए ये नाम अनादि है क्योंकि नये-नये नाम उत्पन्न होते तो सृष्टि में भिन्न-भिन्न होते, परन्तु वेद से ज्ञात होता है कि जिस प्रकार सूर्य चन्द्र आदि परमात्माने इस संसार से पहले सर्ग में रखे थे वही इस सर्ग अर्थात् संसार में रखे। ऐसे ही उससे पहले इन नामों के अनादि होने से ज्ञात होता है कि अयोनिज मनुष्य भी होते हैं, जिनके मां-बाप के न होने से उनके रूढ़ि नाम तो हे ही नहीं सकते उन्हें यौगिक नामों से अर्थात् अग्नि, वायु, आदित्य अंगिारा, ब्रह्य और मनु से पुकारते हैं। इसलिए वेदों में जिन योगिक नामों का उल्लेख है वे प्रत्येक सृष्टि में एक से होते हैं, और अयोनिज लोगों के वही नाम पूर्व सर्ग के अयोनिज लोगों के थे, रखे जाते हैं।